गर्मी की छुट्टी
प्रतियोगिता हेतु रचना
गर्मी की छुट्टी
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गर्मी की छुट्टी होई गई हैं
नानी की याद सताय रही।
बगियन मा खुब टबका लटके
कोयलिया हमैं बुलाय रही।।
बचपन मा हम अम्मा के संग
ननिहाल मां अपनी जात रहेन।
मामा के संग बागन मा
आमन का खुब खाति रहेन।।
मामा हमरे हैं बहुत नीक
हमका बहुत उई चाहत हैं।
गर्मी की छुट्टी आवत ही
अपने घर मा लई जावत हैं।।
सुबह से उठि कै बम्बा मा
रगरि रगरि नहलावत हैं।
फिर ताजे खरबूजा तोड़ि- तोड़ि
अपने हाथन से खिलावत हैं।।
फिर नानी घर मा ताजा माठा
और मक्खन खूब खिलवती हैं।
चूल्हे की गरम गरम रोटिन का
घी मा खूब डुबौती हैं।।
खाना के संग आमन का वो स्वाद
हमका वो अब तक याद हवै।
मीठे आमन का ढूंड़ि- ढूंड़ि
सब छांटि-छांटि कै खात सबै।।
गर्मी की छुट्टी खत्म होत
आवैं की तैयारी होइ गय।
अमरस,अचार खुब लइ आयेन
स्कूलन की तैयारी फिर भय।।
नानी का हमरी वो अचार
अब कहूं नहीं मिलि पावत है।
उई अचार का सोंचि सोंचि
मुंहमा पानी बस आवत है।।
उई दिन अब लौटि कै का अइहैं
ना नानी हैं ना बाग रहे।
मामा-मामी सब शहर बसे
नानी के घरौ उजाड़ रहे।।
गांव-गांव अब नहीं रहे
गांव सबै होई गए शहर।
सब बाग बगीचा खत्म भए
मंहगाई का होऊं कहर।।
पथिक बिचारे सोंचि रहे
ननिहाल की याद सतावति है।
नाना-नानी अब नहीं रहे
अब कोऊ नहीं बोलावति है।।
विद्या शंकर अवस्थी पथिक कानपुर
Mohammed urooj khan
23-Apr-2024 04:11 PM
👌🏾👌🏾👌🏾👌🏾
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Arti khamborkar
22-Apr-2024 03:37 PM
Amazing
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